यह मौसम कुछ सर्द है
इन हवाओं मे कुछ दर्द है
सिसकियाँ लेती है साँसे
जो रुकती सी आती है
यादों के कारण
कुछ रिश्ते थे
वो बह गये कौमी इकतिलाफ में
रिश्तों के हरे मैदान
अब बंजर है
उन रिश्तों की यादें अब
चुभती जेसे कोई खंजर है
यह मौसम कुछ सर्द है
इन हवाओं में कुछ दर्द है
जाड़े में ठिठुरती सी थी वो औरत
छोड़ आई थी घर भार
दंगो का कहर था
उससे बड़ी थी सर्दी की मार
तंबुओ का घर, पर नही मुड़ सकते वापिस
जहाँ लोगों का रक्त गर्म और रूह सर्द है
वहाँ की हवाओं में कुछ दर्द है
मुन्ना सांस नही लेरहा, कहर का जंजाल है
भागा मैं उस औरत के घर पर, देखा कुदरत की जो मार है
साँसे थम गयी, उसका जिस्म सर्द है
दफ़नाउंगी इसे अपने गाव में, वहाँ लाशो की भरमार है
मरता कौन है सर्दी से, कहती अपनी सरकार है
No comments:
Post a Comment